देवशयनी जब भगवान विष्णु शयन काल की अवधि के बीच होतें हैं, तब देव शक्तियां कमजोर होने लगती हैं। उस समय पृथ्वी पर रूद्र वरुण यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है। इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है।
सतयुग में चैत्र नवरात्र त्रेता में आषाढ़ नवरात्र द्वापर में माघ कलयुग में आश्विन की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है। मार्कंडेय पुराण में इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व है शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में दैत्य राक्षस दुर्ग ने ब्रह्मा को तप से प्रसन्न कर के चारों वेद प्राप्त कर लिए। तब वह उपद्रव करने लगा। वेदों के नष्ट हो जाने से देव-ब्राह्मण पथ भ्रष्ट हो गए। जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही।
देवताओं ने मां पराम्बा की शरण में जाकर दुर्ग का वध करने का निवेदन किया। मां ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध किया।
दस महाविद्याओं की साधना के लिए तभी से 'गुप्त नवरात्र' मनाया जाने लगा इस गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति से उपासना की जाती है। यह समय शाक्य एवं शैव धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है। इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है। साथ ही संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की साधना भी की जाती है।
यह साधनाएं बहुत ही गुप्त स्थान पर या किसी सिद्ध श्मशान में की जाती हैं दुनियां में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान, त्रयंबकेश्वर (नासिक) और उज्जैन स्थित चक्रतीर्थ श्मशान।
गुप्त नवरात्रि में यहां दूर-दूर से साधक गुप्त साधनाएं करने यहां आते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं।
माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है। जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजििनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है। आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है, वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को
अधिक मान्यता नहीं दी गई है। ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है।
शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। इन्हीं कारणों से माघ मास की नवरात्रि में सनातन, वैदिक रीति के अनुसार देवी साधना करने का विधान निश्चित किया गया है। गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि (माघ तथा आषाढ़) में विशेष साधना करते हैं। तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं।
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥
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