"जय श्री कृष्ण"
यह जय घोष और यह सूत्र का प्राकट्य और रचना कैसे हुई?
जब श्री वल्लभ अपनी प्रथम परिक्रमा कर रहे थे और उन्हें संकेत पाया "श्री नाथजी" प्राकट्य का और उन्हें आज्ञा की "श्री वल्लभ" आप पधारो गोवर्धन और हमें पूर्ण स्वरुप से प्रस्थापित करो।
तो वल्लभ जब दौडके गोवर्धन पहूँच कर सब परम वैष्णवों का साथ लेकर श्री गोवर्धन उपर पहूँच रहे थे तब "श्री श्रीनाथजी" अपने पूर्ण रुप से बाहर प्रकट हो कर श्री वल्लभ को मिलने दौडने लगे, यहाँ श्री वल्लभ दौडके "श्री श्रीनाथजी" को मिलने दौडे और दोनों के नैन से नैन एक हुए और जब "श्री श्रीनाथजी" श्री वल्लभ को गले लगा कर प्रथम मिलन किया तब श्री वल्लभ के मुख से प्रकट भये यह जय घोष और सूत्र "जय श्री कृष्ण"
यही है प्रथम पुष्टि प्रीत सूत्र की प्राकट्य लीला।
हमें इसलिए जब भी जो भी मिले हमें "जय श्री कृष्ण" करना चाहिए।
यही ज्ञान और भाव है परम गुरु अखंड भू मंडलाचार्य श्री वल्लभाचार्यजी का। बोलो श्री वल्लभाधिश की जय!.......
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