कोई चाहे कितना भी महान क्यों ना हो जाए,
पर कुदरत कभी भी किसीको महान बननेका मौका नहीं देती ।।
कंठ दिया कोयलको, तो रूप छीन लिया ।
रूप दिया मोरको, तो ईच्छा छीन ली ।
दि ईच्छा इन्सानको, तो संतोष छीन लिया ।
दिया संतोष संतको, तो संसार छीन लिया ।
दिया संसार चलाने, देवी-देवताओंको, तो उनसे भी मोक्ष छीन लिया ।
मत करना कभी भी ग़ुरूर अपने आप पर 'ऐ इंसान',
मेरे रबने तेरे और मेरे जैसे कितने मिट्टीसे बनाके, मिट्टीमें मिला दिए ।
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