राबिया निरंतर खुदा का स्मरण करती और संतो के साथ आध्यात्मिक चर्चा मे लीन रहती. लोग उन्हें श्रद्धा की दृष्टी से देखते थे. उनका आशिर्वाद लेने दूर दूर से श्रद्धालु आते थे. किंतु राबिया इस लोकप्रियता के अहंकार से कोसो दूर थी.
एक बार वे संतो के साथ आध्यात्मिक चर्चा कर रही थी. कुछ ही देर मे वहा संत हसन बसरी आए . और कहा , "बहन राबिया , क्युँ न हम झील के पानी पर बैठकर खुदा की बात करे . "
ऐसा कहा जाता था की हसन बसरी पानी पर चल सकते थे.
राबिया उनके संकेत को समझकर बोली, "हसन भैया , हम खुदा का जिक्र आसमान मे उडते हुए करे तो कैसा रहेंगा?"
दरअसल राबिया को आसमान मे उडने का हुनर हासील था.
हसन को निरुत्तर देख राबिया ने कहा , "भैया, जो काम आप कर सकते हो वो तो एक छोटीसी मछली भी कर सकती है और जो मै कर सकती हूं उसे एक मामुली मक्खी भी कर लेती है. लेकीन सत्य इस करिश्मेबाजी से कोसो दूर है. उसे तो विनम्र होकर ही खोजना पडता है. जो विनम्र है वो ही सत्य का सच्चा अन्वेषी है."
हसन राबिया की महानता से अभिभूत हुए .
सारांश : अहंकार को विनम्रता मे विलीन करके ही परमात्मा पाया जा सकता है.
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