हटाकर खाक को, दाना उठाना सीख लेता है,
परिंदा चार पल में, फड़फड़ाना सीख लेता है।
गरीबी ला के दे देती है,बिन माँगे हुनर ऐसा,
कि नाज़ुक पाँव भी, रिक्शा चलाना सीख लेता है।
सियासत वो मदरसा है,जहाँ तालीम ले ले कर,
अनाड़ी एक को, ग्यारह बनाना सीख लेता है।
जवां दिल इश्क़ के चक्कर में,कुछ सीखे कि ना सीखे,
घरों में देर से आने का, बहाना सीख लेता है।
भले सुर ताल से खारिज रहे, लेकिन हरेक इन्सां,
गुसलखाने में जाकर गुनगुनाना सीख लेता है
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