वर्ष १८९८ में कोलकत्ता प्लेग की महामारी से ग्रस्त था. चारो और मृत्यु तांडव मचा रही थी. लगभग हर एक घर का कोई न कोई आदमी प्लेग से ग्रस्त था. जिन मो की गोद सुनी हो गई थी, उनका कष्ट देखना भी असहनीय था. ऐसे भीषण संकट के दौर में रामकृष्ण मिशन महामारी से ग्रस्त लोगो की सहायता के लिए आगे आया मिशन के लोग यथाशक्ति तन मन धन से लोगो की मदद करने लगे. किन्तु एक समय ऐसा आया की मिशन के समक्ष आर्थिक संकट खड़ा हो गया क्योकि एक साल पहले जब उन्होंने मिशन के लिए जमीन खरीदी स्वामी विवेकानंदा उस से हिमालय प्रवास पर गए थे और वे अस्वस्थ थे फिरभी महामारी और पैसो की कमी सुन वह कोलकत्ता पहुचे तब वहा पे उन्होंने देखा की वे लोग एक किराया की जमीन पर एक शिविर लगाकर रोगियों का मिशन इलाज करवा रहा था. लेकिन पैसा कम पड़ने के कारन कार्य में बाधा आ रही थी. स्वामी जी ने तत्काल यह आदेश देते हुए कहा की हम सन्यासी है अतः हमें पेड़ की चाय और भिक्षा मांगकर खाने के लिए तैयार रहना चाहिए. मठ का निर्माण भले न हो किन्तु सेवाकार्य में बाधा नहीं आनि चाहिए जमीन बेचकर असंख्य लोगो की जान बचाते हुए स्वामीजी ने साधू शब्द को साचा गौरव दिया. वस्तुतः सन्यास तभी घटता जब उसमे प्रभु स्मरण और समर्पनता और मानव सेवा का उदात्त भाव भी शामिल हो.
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Tuesday, 2 February 2021
स्वामी विवेकानंदा की सेवा के लिए मठ ने बेचीं जमीन
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