ðघी, दूध, मूँग, गेहूँ, लाल साठी चावल, आँवले, हरड़े, शुद्ध शहद, अनार, अंगूर, परवल – ये सभी के लिए हितकर हैं।
ðअजीर्ण एवं बुखार में उपवास हितकर है।
ðदही, पनीर, खटाई, अचार, कटहल, कुन्द, मावे की मिठाइयाँ – से सभी के लिए हानिकारक हैं।
ðअजीर्ण में भोजन एवं नये बुखार में दूध विषतुल्य है। उत्तर भारत में अदरक के साथ गुड़ खाना अच्छा है।
ðमालवा प्रदेश में सूरन(जमिकंद) को उबालकर काली मिर्च के साथ खाना लाभदायक है।
ðअत्यंत सूखे प्रदेश जैसे की कच्छ, सौराष्ट्र आदि में भोजन के बाद पतली छाछ पीना हितकर है।
ðअदरक, नींबू एवं सेंधा नमक का सेवन हितकर है।
ðपुनर्नवा(विषखपरा) की सब्जी का सेवन करें अथवा उसका रस पियें तो अच्छा है।
ðदही की लस्सी पूर्णतया हानिकारक है। दहीं एवं मावे की मिठाई खाने की आदतवाले पुनर्नवा का सेवन करें एवं नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करें तो लाभप्रद हैं।
ðशराब पीने की आदतवाले अंगूर एवं अनार खायें तो हितकर है।
ðआँव होने पर सोंठ का सेवन, लंघन (उपवास) अथवा पतली खिचड़ी और पतली छाछ का सेवन लाभप्रद है।
ðअत्यंत पतले दस्त में सोंठ एवं अनार का रस लाभदायक है।
ðआँख के रोगी के लिए घी, दूध, मूँग एवं अंगूर का आहार लाभकारी है।
ðव्यायाम तथा अति परिश्रम करने वाले के लिए घी और इलायची के साथ केला खाना अच्छा है।
ðसूजन के रोगी के लिए नमक, खटाई, दही, फल, गरिष्ठ आहार, मिठाई अहितकर है।
ðयकृत (लीवर) के रोगी के लिए दूध अमृत के समान है एवं नमक, खटाई, दही एवं गरिष्ठ आहार विष के समान हैं।
ðवात के रोगी के लिए गरम जल, अदरक का रस, लहसुन का सेवन हितकर है। लेकिन आलू, मूँग के सिवाय की दालें एवं वरिष्ठ आहार विषवत् हैं।
ðकफ के रोगी के लिए सोंठ एवं गुड़ हितकर हैं परंतु दही, फल, मिठाई विषवत् हैं।
ðपित्त के रोगी के लिए दूध, घी, मिश्री हितकर हैं परंतु मिर्च-मसालेवाले तथा तले हुए पदार्थ एवं खटाई विषवत् हैं।
ðअन्न, जल और हवा से हमारा शरीर जीवनशक्ति बनाता है। स्वादिष्ट अन्न व स्वादिष्ट व्यंजनों की अपेक्षा साधारण भोजन स्वास्थ्यप्रद होता है। खूब चबा-चबाकर खाने से यह अधिक पुष्टि देता है, व्यक्ति निरोगी व दीर्घजीवी होता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि प्राकृतिक पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के सिवाय जीवनशक्ति भी है। एक प्रयोग के अनुसार हाइड्रोजन व ऑक्सीजन से कृत्रिम पानी बनाया गया जिसमें खास स्वाद न था तथा मछली व जलीय प्राणी उसमें जीवित न रह सके।
ðबोतलों में रखे हुए पानी की जीवनशक्ति क्षीण हो जाती है। अगर उसे उपयोग में लाना हो तो 8-10 बार एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेलना (फेटना) चाहिए। इससे उसमें स्वाद और जीवनशक्ति दोनों आ जाते हैं। बोतलों में या फ्रिज में रखा हुआ पानी स्वास्थ्य का शत्रु है।
ðपानी जल्दी-जल्दी नहीं पीना चाहिए। चुसकी लेते हुए एक-एक घूँट करके पीना चाहिए जिससे पोषक तत्त्व मिलें।
ðवायु में भी जीवनशक्ति है। रोज सुबह-शाम खाली पेट, शुद्ध हवा में खड़े होकर या बैठकर लम्बे श्वास लेने चाहिए। श्वास को करीब आधा मिनट रोकें, फिर धीरे-धीरे छोड़ें। कुछ देर बाहर रोकें, फिर लें। इस प्रकार तीन प्राणायाम से शुरुआत करके धीरे-धीरे पंद्रह तक पहुँचे। इससे जीवनशक्ति बढ़ेगी, स्वास्थ्य-लाभ होगा, प्रसन्नता बढ़ेगी।
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