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Friday 25 December 2020

नव वर्ष

यह नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं ;
है अपना यह त्यौहार नहीं।
है अपनी यह तो रीत नहीं ;
है अपना यह व्यवहार नहीं।।
धरा ठिठुरती है शीत से ;
आकाश में कोहरा गहरा है।
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर ;
सर्द हवाओं का पहरा है।।
सूना है प्रकृति का आँगन ;
कुछ रंग नहीं - उमंग नहीं।
हर कोई है घर में दुबका हुआ ;
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं।।
चंद मास अभी  करो ;
निज मन में तनिक विचार करो।
नये साल नया कुछ हो तो सही ;
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही ?!
ये धुंध कुहासा छंटने 2 ;
रातों का राज्य सिमटने 
प्रकृति का रूप निखरने 2 ;
फाल्गुन का रंग बिखरने ।।
प्रकृति दुल्हन का रूप धर ;
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी।
शस्य – श्यामला धरती माता ;
घर - घर खुशहाली लायेगी।।
तब चैत्र - शुक्ल  की प्रथम तिथि ;
नव वर्ष मनाया जायेगा।
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर ;
जय - गान सुनाया जायेगा।।

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