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Monday 2 November 2020

मलबई कि वीरता के सामने शिवाजी भी झुक गए

दक्षिण भारत का बहुत छोटा सा राज्य था बल्लारी। उसका शासक कोई पुरुष ना होकर एक विधवा नारी थर्मल भाई देसाई। वह शौर्य की साक्षात प्रतिमा थी। एक बार छत्रपति शिवाजी महाराज ने बल्लारी पर चढ़ाई की जिन मराठों की सेना ने दिल्ली के बादशाह औरंगजेब की भीड़ नाक में दम कर रखा था उसका सामना बल्लारी के मुट्ठी भर सैनिक कैसे करते किंतु वे बड़ी वीरता से लडेशिवाजी ने बल्लारी के सूर्य वीरो का शौर्य देखा तो वाह-वाह कर उठे। बल्लारी के सैनिकों का एक बड़ा भाग खेत रहा। शेष बंदी बना लिए गए। पराजय तो पहले से ही निश्चित थी किंतु मलवाई बंदिनी होकर भी सम्मान पूर्वक ही छत्रपति के सामने उपस्थित की गई। यद्यपि अपने सम्मान से प्रसन्न नहीं थी। शिवाजी से एक नारी होने के कारण मेरा यह परिहास क्यों किया जा रहा है? छत्रपति तुम्हारा राज्य बड़ा है हमारा छोटा तुम स्वतंत्र हो थोड़ी देर पहले मैं भी स्वतंत्र थी पूर्णविराम मैंने स्वतंत्रता के लिए लड़ाई की है। तुम्हारे लोगों का यह धरना आदर दान मेरा अपमान है और हाथ जोड़कर बल्लारी स्वतंत्रता और स्वतंत्र है मैं आपका शत्रु नहीं हूं पुत्र हूं। अपनी माता की मृत्यु के बाद में मात्र हीन हो गया हूं पूरा मेरे अपराध क्षमा कर मुझे पुत्र श्री कार्य। यह कह कर उन्होंने माता मल बई की जय का उद्घोष किया और मलवाई ने भी शिवाजी को अपना पुत्र स्वीकार लिया।

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