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Sunday 2 August 2020

निस्वार्थ भाव से की गई सेवा ही सच्चा पुण्यकर्म है

भारत के स्वाधीनता संग्राम कई महान विभूतियों का योगदान रहा है। इनमें से कुछ ऐसा मार्ग के मनोज आएगी थे तो कुछ क्रांति पथ के पथिक। इन्हीं में से एक थे यतींद्र नाथ बोस। क्रांतिकारी थे और भारत की आजादी के लिए इनके प्रयास अत्यंत सराहनीय रहे। इन्हीं के जीवन की एक घटना है जो आज के यांत्रिक और अमानवीय होते जा रहे हैं समाज के लिए प्रेरणा लेने योग्य है। एक दिन यतींद्र नाथ गर्मी की चलती जाती धूप में कोलकाता की एक सड़क पर पैदल कहीं जा रहे थे पूर्णविराम रास्ते में एक स्थान पर उन्होंने भारी भीड़ देखी। जतिंद्रनाथ भीड़ को चीरते हुए अंदर घुसे अवाक रह गए और उन्होंने देखा एक वृद्धा गर्मी से परेशान होकर बोझा उठाने में असमर्थ होकर नीचे गिर पड़ी है। मौखिक सहानुभूति सभी जता रहे थे। किंतु उसे उठाकर घर पहुंचाने की वास्तविकता सहायता के लिए कोई तैयार नहीं था। यतींद्र नाथ ने वृद्धा को सहारा दिया और उसका बोझ उठाकर बोले चलो मां घर चले। घर पहुंच कर उन्होंने पूछा तुम्हारा और कोई नहीं है क्या व्रत था यह सुनकर रो पड़ी और बोली एक ही बेटा था जो महामारी के कारण मर गया। अब बोझा ढो कर पेट की आग बुझाती है। यतींद्र नाथ द्रवित होकर बोले मां यह बेटा अभी जीवित है। अब तुम्हें कभी बोझा नहीं ढोना पड़ेगा यह कहते हुए उन्होंने उसके चरण छूकर कुछ रुपए दिए और फिर आज जीवन उसका भरण पोषण किया और राम कथा का सार यह है कि निस्वार्थ सेवा पुण्य कर्म है और उसे करने वाला सच्ची पुण्यात्मा रखता है।

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