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Saturday, 15 August 2020
मदत ना करने पर दंड मिला पालकी वालों को
यह एक जातक कथा है। जो सहायता के महत्व पर केंद्रित है। मोहन एक दयालु व्यक्ति था। खास तौर पर जानवरों के लिए तो उसके मन में बहुत दया थी। हालांकि आज के समय में जानवरों की सहायता व देखरेख आमतौर पर कोई नहीं करता। मोहन ने एक गाय पाल रखी है। जिसका नाम धेनु था। उससे वह बहुत पसंद थी। वह और उसकी पत्नी तेनु और उसके बछड़े की बड़े प्यार से देखभाल करते थे। एक दिन शाम होने पर रोज की तरह देना और उसका बछड़ा शेयर कर घर वापस नहीं लौटे। मोहन और उसकी पत्नी परेशान हो गए। मोहन ने अपने दोनों नौकरों को गाय और बछड़े को ढूंढ कर लाने को कहा। के नौकर वास्तव में पालकी ढोने वाले थे। उन्होंने मोहन की बात मानने से इनकार करते हुए कहा हम पालकी वाले हैं गडरिया नहीं। इसलिए हम गाय ढूंढने नहीं जाएगी मोहन को उनकी बात सुनकर बहुत गुस्सा आया और उसने उन्हें सबक सिखाने का फैसला किया। वह तत्काल बाहर जाकर अपनी पार्टी में बैठ गया। फिर उसने उन दोनों को तब तक पालकी ढोते रहने को कहा जब तक कि गाय और बछड़ा मिल ना जाए पूर्ण राम इस तरह पालकी वालों को सहायता ना करने का दंड मिल गया और मेरा सार यह है कि दूसरों की मदद करने से कराना वालों को अवसर आने पर दोहरा कार्य करना पड़ता है। और तब उनकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आता। इसलिए सदैव दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहना चाहिए।
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