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Monday, 10 August 2020
जब मेंढक ने अती क्षमतावान बनने की सजा पाई
एक तालाब मैं बड़े छोटे में रखो का एक परिवार रहता था। सभी स्नेहा पूर्वक रहते थे और परस्पर एक दूसरे का ध्यान रखते थे। 1 दिन तालाब के किनारे की घास खाने एक बेल आया पूर्णाराम वह बड़े मजे से खास चल रहा था और उसे तालाब के पानी से बड़ी शीतल भी महसूस हो रही थी पूर्णविराम उसी समय पानी में से एक छोटा मेंढक बाहर निकला। जीवन में पहले बार बार देखा था। वह बैल का विशाल शरीर देखकर डर गया और तत्काल पानी में कूद गया। फिर वह एक बड़े मेंढक के पास पहुंचा और उसे बताया कि मैंने तालाब के बाहर एक भयंकर पहाड़ जैसे जाना देखा है उदाराम जिसके सीन है। एक लंबी पूंछ है और दो भागों में बट खुर है। एक दूसरे मेंढक ने जानकारी दी कि वह दाना नहीं बैल है। किंतु एक बूढ़ी मेंढक ने कभी पहले नहीं देखा था और वह घमंडी भी था पूर्णविराम वह बोला वह इतना बड़ा भी नहीं होगा बस मुझसे थोड़ा ही ऊंचा होगा। जबकि मैं तो अपने आपको आसानी से बड़ा भी कर सकता हूं। ऐसा कह कर उसने स्वयं को सुनाना शुरू कर दिया ताकि वह बड़ा हो जाए। छोटा मेंढक उसे देखकर बोला की बेल तो उससे काफी बड़ा है। बूढा मेंढक यह सोचकर कि वह उसके जितना बड़ा नहीं है लगातार स्वयं को फुल आता गया। जब उसने क्षमता से अधिक स्वयं को बुलाया तो उसका शरीर फट गया और उसकी मृत्यु हो गई। सार यह है कि निरंतर सक्रिय रहकर अपनी क्षमता को बढ़ाना अच्छा है किंतु उसके अंतिम बिंदु से ऊपर जाने का प्रयास करना संकट को आमंत्रण देना है। इसीलिए क्षमता वान बने किंतु अति क्षमता बांधने का प्रयास ना करें।
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