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तीसरी सुभाषितानि-
दाने तपसि शौर्य च विज्ञान विनये नये।
विस्मयो न हि कर्त्तव्यों बहुरत्ना वसुंधरा।
अर्थ- दान में, तपस्या में, शूरवीरता में, विज्ञान में, विनम्रता में, और नीति में कभी आश्चर्य नहीं करना चाहिए। क्योकि इस पृथ्वी में कई रत्न।
जरुरी शब्दार्थ-
१. तपसि- तपस्या में
२. नये- निति में
३. विस्मयः - आश्चर्य
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चौथी सुभाषितानि-
सभ्दिरेव सहासीट सभ्दि: कुर्वीत संङ्गतं।
सभ्दिर्विवादं मैत्रीं च नासभ्दीः किञ्चिदाचरेत्।
अर्थ- सज्जन लोगो के साथ ही रहना चाहिए, सज्जन लोगो की ही सांगत में रहना चाहिए। मित्रता, लड़ाई और बहस भी सज्जन लोगो के साथ ही करनी चाहिए। दुर्जन लोगो के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध या आचरण नहीं रखना चाहिए।
जरुरी शब्दार्थ -
१. सभ्दिरेव (सभदि+रेव)- सज्जन लोगो के ही
२. सहासीत (सह+आसीत)- साथ बैठना चाहिये
३. सभ्दिर्विवादं (सभ्दिः+विवादं)- सज्जनो के साथ झगड़ा
४. नासभ्दिः (न+सभ्दि)- असज्जन लोगो के साथ नहीं
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