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Friday 31 July 2020

आखिर सम्राट ने साधु को असली सम्राट माना

चीन के महान संत 1 दिन जंगल में बैठकर चिंतित कर रहे थे। उन्हें प्रायः एकांत स्थलों पर जाना पसंद था क्योंकि वहां की शांति ध्यान और चिंतनमनन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती थी पूर्णविराम उस दिन के सम्राट का काफिला उधर से गुजरा। जब सम्राट ने साधु को ध्यान रखना देखा तो उनके मन में जिज्ञासा हुई थी ए कौन है। रे साधु के पास आए और कुछ देर तक उन्हें देखते रहे। सर बोले आप कौन हैं। साधु ने कहा मैं सम्राट हूं। देखो मेरे पास सेना है सेवक है बहुत सारा धन संपत्ति और हाथी घोड़े हैं। तुम्हारे पास तो इनमें से कुछ नहीं दिखाई देता। फिर तुम सम्राट कैसे हुए साधु मुस्कुराते हुए बोले थे ना उसे चाहिए जिसके शत्रु हो। मेरा कोई शत्रु नहीं है। इसलिए मुझे सेना की जरूरत नहीं। जो आशिया असमर्थ होते हैं उन्हें सेवकों की जरूरत होती है। ना मैं आलसी हूं और ना असमर्थ इसीलिए मुझे सेवक की आवश्यकता नहीं। धन-संपत्ति दरिद्र को चाहिए और मैं दरिद्र अभी नहीं हूं क्योंकि मेरे पास संतोष रूपी धन है। अब आप ही बताइए असली राजा कौन है। सम्राट निरुत्तर हो आगे बढ़ गए। और साधु को सम्राट बना दिया।

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