हर सितम सह कर कितने गम छिपाए हमने;
तेरी ख़ातिर हर दिन आँसू बहाए हमने;
तू छोड़ गया जहाँ हमें राहों में अकेला;
बस तेरे दिए ज़ख्म हर एक से छिपाए हमने।
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इस दिल को अब ना शिकवा ना गिला, ना कोई मलाल रहा
सितम तेरे भी बेमिसाल रहे, सब्र मेरा भी कमाल रहा!
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इससे बढ़कर और क्या सितम होगा ऐ मेरे खुदा,
वो चाहते भी है और कहते भी नहीं
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मुझ पे सितम ढा गए थे मेरी ही ग़ज़ल के शेर
पढ़ पढ़ के रो रहे थे वो किसी और के ख्याल में
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जिन्दगी का सफर इस कदर सुहाना होना चाहिए....!!
सितम भी अगर हो हजार फिर भी अंदाज शायराना होना चाहिए...! !
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वो ही चुप हो गया कोई बात कहते कहते,
हम तो आदी हो चुके है अब सितम सहते सहते
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गुनाह करके सजा से डरते है,
ज़हर पी के दवा से डरते है.
दुश्मनो के सितम का खौफ नहीं हमे,
हम तो दोस्तों के खफा होने से डरते है..
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तेरी यादों के सितम सहते हैं हम;
आज भी पल-पल तेरी यादों में मरते हैं हम;
तुम तो चले गए बहुत दूर, हमको इस दुनियां में तन्हा छोड़कर;
पर तुम क्या जानो, बैठकर तन्हाई में किस कदर रोते हैं हम।
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