गुरु नानक अत्यंत सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। उन्हें वाह आडंबर से चिड़सी पूर्णविराम ईश्वर के ध्यान व पूजा में भी उन्होंने सदैव अजय की निष्ठा पर बल दिया न की विधि विधान पर पूर्णविराम एक बार की बात है। गुरु नानक गंगा की नदी पर स्नान करने गए। संयोग से उसी समय वहां एक अंडा आया और अपने भक्तों से उनके पूर्वजों का तर्पण करवाने लगे। पंडित उन्हें दान करने के लिए वस्तुओं की लंबी चौड़ी सूची व भारी धनराशि का आग्रह रेखा। फंडा उनके पूर्वजों की आत्माओं का भय दिखाकर उन्हें लूटे जा रहा था पूर्णविराम अंजलि में जल भरकर छोड़ते जा रहे थे और पाडे की बातों से सहमति जताते जाते रहे थे। गुरु नानक एअर्थ के पाखंड पर बड़ा क्रोध आया। उन्होंने विपरीत दिशा की ओर मुंह कर जलछोड़ने से पानी खेत में कैसे बहुत सकता है कब नानक इस कर बोले जब तुम्हारे अनुसार इन सीधे-साधे लोगों द्वारा धरती पर छोड़ा गया अंजली जल इनके पूर्वजों तक पहुंच सकता है तो मेरे द्वारा विपरीत दिशा में छोड़ा गया अंजली जल मेरे खेत में क्यों नहीं पहुंच सकता? पंडा शर्मा ते हुए पानी पानी होकर वहां से चुपचाप चला गया। दरअसल तर्कहीन आडंबरों में समय व धन की बर्बादी मेरी मूर्खता है। जिस से दूर रहना और सत कार्यों में अपनी समग्र ऊर्जा का निवेश करना बुद्धिमानी है।
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