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Friday, 3 April 2020

तलब


दीदार की 'तलब' हो तो नज़रे जमाये रखना 'ग़ालिब'
क्युकी, 'नकाब' हो या 'नसीब'.....सरकता जरुर है.
रफ़्तार कुछ इस कदर तेज है जिन्दगी की..
सुबह का दर्द शाम को, पुराना हो जाता है..
जरुरी नहीं रौशनी चिरागो से   ही हो.
बेटियां भी घर मैं उजाला करती हैं.. !!
मुझे कुछ अफ़सोस नहीं के मेरे पास सब कुछ होना चाहिए था ।
मै उस वक़्त भी मुस्कुराता था जब मुझे रोना चाहिए था ।
अभी सूरज नहीं डूबा ज़रा सी शाम होने दो"
मैं खुद लौट जाउंगा मुझे नाकाम होने दो"
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों"
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो..
प्यार मै कोइ तो दील तोड देता है।
दोस्ती मेँ कोइ तो भरोसा तोड देता है।
जीन्दगी जीना तो कोइ गुलाब से सीखे।
जो खुद टुट कर दो दीलो को जोड देता हैँ
पानी दरिया में हो या आँखोंमें,
गहराई और राज़ दोनोंमें होते हैं!!
बुलंदियों पर पहुँच कर गुरुर ना करना,
सफ़र की ढलान अभी बाकी है ....!
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This poem I got from social media. I don't know who is the poet please comment the name of the clever poem in comment section below.

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