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Monday, 27 April 2020

बालक गोपाल ने स्ट्रीट लाइट में पढ़कर अपना बजट सुधारा

गोपाल नाम का एक बालक था। अत्यंत निर्धन परिवार का यह बालक बड़े संघर्षों के बीच अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था। वह काम भी करता और अध्ययन भी। जब उसके सहपाठी मनोरंजन के लिए मेले, नाटक या कहीं घूमने के लिए कहां थे तो वह चलने से इनकार कर देता, क्योंकि ना तो उसके पास इन सब चीजों के लिए पैसे होते थे और ना ही वह इनकी इच्छा रखता था पूर्णविराम एक बार उसके एक मित्र ने उसे एक नाटक देखने के लिए साथ चलने पर बहुत जोर दिया, तो वह मान गया पूर्णविराम दोनों ने नाटक देखा। उस समय तो मित्र ने दोनों के पैसे दे दिए किंतु अलग ही देव गोपाल से उसके टिकट के पैसे देने को कहा, किंतु अगले ही दिन गोपाल से उसके टिकट के पैसे देने को कहा पूर्णविराम यह सुनकर गोपाल को झटका सा लगा,क्योंकि वह समझ रहा था कि मित्र ने अपनी ओर से नाटक दिखाया है। गोपाल ने उसे दो आने दे दिए, किंतु उसका बजट गड़बड़ा गया पूर्णविराम उसे महीने भर के लिए कुल ₹8 मिलते थे जिसमें से चार खाने के कोमा चार स्कूल फीस,किताब व कपड़ों पर खर्च होते थे। अपना बजट सही करने के लिए गोपाल ने अपनी लालटेन में डालने वाले तेल में बचत करने की ठानी। फिर शेष महीनों की पढ़ाई उसने सड़क पर लगे खंभों की रोशनी में की और अपना बजट ठीक किया। आगे चलकर वह बालक गोपाल कृष्ण गोखले के नाम से विख्यात हुआ, जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में महती भूमिका निभाई। वस्तुत: आप भी आया सदा असंतुलन का जनक होता है, जबकि अपनी
 आवश्यकताओ को सीमित रखकर मितव्ययिता से काम करने वाले का जीवन अत्यंत सदा हुआ और संतुलित होता है।

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