मेरे प्यारे वाचक मंडलियों आपसे विनती है ये शायरी ब्लॉग पूरा पढिये और शायरी पसंद करने वाले सभी से शेयर करिये। शायरी कलेक्शन को पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को follow करिये। धन्यवाद।
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खुद को खुश रखने के तरीके खोजे.....
तकलीफे तो आपको खोज ही रही है....!
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कडवे हो इसलिए जिन्दा हो....
मीठे होते तो दुनिया अब तक गटक गई होती......
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जब कोई “हाथ” और“साथ”* *दोनों ही छोड़ देता है,
तब “कुदरत” कोई न कोई उंगली पकड़ने वाला भेज देती है,
इसी का नाम “जिदंगी” है...
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कहने वाले कुछ भी कहते रहते हैं,
ख़ामोशी से हम सब सहते रहते हैं...
कुछ दरिया में बहने वाले होते हैं,
कुछ के अंदर दरिया बहते रहते हैं...
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उम्र से कोई लेना देना नहीं होता....
जहां विचार मिलते है वही सच्चा प्रेम होता है....
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दवा न काम आयी, काम आयी न दुआ कोई,
मरीजे-इश्क थे आखिर हकीमों से शिकायत क्या।
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ईलाइची की महक ओढ़े,
अदरक का श्रृंगार कर सजी थी।
केतली की दहलीज से निकल कर,
प्याली की डोली में बैठी थी।
इस भागते हुए वक्त पर,
कैसे लगाम लगाई जाए।
ऐ वक्त..., आ बैठ,
तुझे एक कप चाय पिलाई जाए।
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महफिल वो नही
जहां चेहरों की तादाद हो
महफिल तो वो है
जहाँ खयाल आबाद हो
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जीने को तो जी रहे हैं उन के बगैर भी लेकिन,
सजा-ए-मौत के मायूस कैदियों की तरह...!!
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सच्ची मुहब्बत कर के बिछड़ने वाले जिंदा कहाँ होते हैं....,
वह दोनों ताउम्र घूँट घूँट कर मर जाया करते हैं...!
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आँखें पढो और जानो हमारी रजा क्या है,
हर बात लफ्जों से बयान हो तो मजा क्या है
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किसे मालूम था इश्क़ इस कदर लाचार करता है...
दिल जानता है कि वो दुर है, फिर भी प्यार करता है...!!!
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पहली मोहब्बत पुराने मुकदमे की तरह होती है..!!
न खत्म होती है और न इंसान को बाइज्जत बरी करती है..!!
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मुझे भी शामिल करो
गुनहगारों की महफिल में,
मैं भी कातिल हूँ......
मैंने अपनी ख़्वाहिशों को मारा है।
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इसे "इत्तेफाक" समझो या..."दर्दनाक"..."हकीकत".....
"आँख"...जब भी "नम" हुई...वजह कोई "अपना" ही निकला.....
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खुद को खुश रखने के तरीके खोजे.....
तकलीफे तो आपको खोज ही रही है....!
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कडवे हो इसलिए जिन्दा हो....
मीठे होते तो दुनिया अब तक गटक गई होती......
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जब कोई “हाथ” और“साथ”* *दोनों ही छोड़ देता है,
तब “कुदरत” कोई न कोई उंगली पकड़ने वाला भेज देती है,
इसी का नाम “जिदंगी” है...
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कहने वाले कुछ भी कहते रहते हैं,
ख़ामोशी से हम सब सहते रहते हैं...
कुछ दरिया में बहने वाले होते हैं,
कुछ के अंदर दरिया बहते रहते हैं...
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उम्र से कोई लेना देना नहीं होता....
जहां विचार मिलते है वही सच्चा प्रेम होता है....
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दवा न काम आयी, काम आयी न दुआ कोई,
मरीजे-इश्क थे आखिर हकीमों से शिकायत क्या।
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ईलाइची की महक ओढ़े,
अदरक का श्रृंगार कर सजी थी।
केतली की दहलीज से निकल कर,
प्याली की डोली में बैठी थी।
इस भागते हुए वक्त पर,
कैसे लगाम लगाई जाए।
ऐ वक्त..., आ बैठ,
तुझे एक कप चाय पिलाई जाए।
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महफिल वो नही
जहां चेहरों की तादाद हो
महफिल तो वो है
जहाँ खयाल आबाद हो
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जीने को तो जी रहे हैं उन के बगैर भी लेकिन,
सजा-ए-मौत के मायूस कैदियों की तरह...!!
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सच्ची मुहब्बत कर के बिछड़ने वाले जिंदा कहाँ होते हैं....,
वह दोनों ताउम्र घूँट घूँट कर मर जाया करते हैं...!
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आँखें पढो और जानो हमारी रजा क्या है,
हर बात लफ्जों से बयान हो तो मजा क्या है
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किसे मालूम था इश्क़ इस कदर लाचार करता है...
दिल जानता है कि वो दुर है, फिर भी प्यार करता है...!!!
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पहली मोहब्बत पुराने मुकदमे की तरह होती है..!!
न खत्म होती है और न इंसान को बाइज्जत बरी करती है..!!
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मुझे भी शामिल करो
गुनहगारों की महफिल में,
मैं भी कातिल हूँ......
मैंने अपनी ख़्वाहिशों को मारा है।
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इसे "इत्तेफाक" समझो या..."दर्दनाक"..."हकीकत".....
"आँख"...जब भी "नम" हुई...वजह कोई "अपना" ही निकला.....
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