ठाकुर जी का बहुत प्यारा भक्त था जिसका नाम अवतार था वह छोले बेचने का काम करता था उसकी पत्नी रोज सुबह-सवेरे उठ छोले बनाने में उसकी मदद करती थी !
एक बार की बात है एक फकीर जिसके पास खोटे सिक्के थे उसको सारे बाजार में कोई वस्तु नहीं देता हैं तो वह अवतार के पास छोले लेने आता हैं !
अवतार ने खोटा सिक्का देखकर भी उस फकीर को छोले दे दिए।ऐसे ही चार-पांच दिन उस फकीर ने अवतार को खोटे सिक्के देकर छोले ले लिए और उसके खोटे सिक्के चल गए !
जब सारे बाजार में अब यह बात फैल गयी की अवतार तो खोटे सिक्के भी चला लेता हैं पर अवतार लोगों की बात सुनकर कभी जबाव नहीं देते थे । अपने ठाकुर की मौज में खुश रहते थे !
एक बार जब अवतार पाठ पढ़ कर उठे तो अपनी पत्नी से बोले -"क्या छोले तैयार हो गए ?"
पत्नी बोली -"आज तो घर में हल्दी -मिर्च नहीं थी और मैं बाजार से लेने गयी तो सब दुकानदारों ने कहा कि--यह तो खोटे सिक्के हैं और उन्होंने सामान नहीं दिया !"
पत्नी के शब्द सुनकर ठाकुर की याद में बैठ गए और बोले-"जैसी तेरी रज़ा ! तुम्हारी लीला कौन जान सका हैं !"
तभी आकाशवाणी हुई -" क्यों अवतार तू जानता नहीं था कि यह खोटे सिक्के हैं !"
अवतार बोला -"ठाकुर जी मै जानता था !"
ठाकुर ने कहा - "फिर भी तूने खोटे सिक्के ले लिए
ऐसा क्यूँ भले मानुष !
अवतार बोला -"हे दीनानाथ ! मैं भी तो खोटा सिक्का हूँ इसलिए मैंने खोटा सिक्का ले लिया मै तुम्हारी शरण मे आऊँ तो तू मुझे अपनी शरण से नकार ना दे !
क्योंकि आप तो खरे सिक्के ही लेते हो आप स्वयं सब जानते हो ! खोटे सिक्कों को भी आपकी शरण मे जगह मिल सकें !
थोड़ी देर में दूसरी आकाशवाणी हुई -"हे भले मानुष ! तेरी हाज़िरी क़बूल हो गयी हैं तू ठाकुर का खोटा सिकका नहीं खरा सिक्का हैं !
जो भी कर्म करो ठाकुर के चरणो मे समर्पित करते रहो फल के बारे मे मत सोचो आप देखना जिंदगी की गाडी कितनी तेज गति से दौडेगी पलटकर नही देखना पडेगा !!
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