YouTube

Saturday 17 March 2018

20 Dollar





Life is full of ups and downs It is easy to lose hope and confidence. This little story helps us to realize that no matter what happens, we remain valuable as individual.

A well known speaker started off his seminar by holding up a $20 bill. In the room of 200 he asked
"Who would like this $20 bill?” Hands started going up. I am going to give this $20 to any one of you but first let me do this.”
He proceeded to crumple the $20 bill up. He then asked, "Who Still Want it?"
Still the hands were up in the air.
“Well" he replied, "What if I do this?"
And he dropped it on the ground and started to grind it into the floor with his shoe.
He picked up it now all crumpled and dirty, now who still wants it?"
Still the hands went up in the air.
He explained, "My friends no matter what I did to the money you still wanted it because it did not decrease in value it was still worth dollar 20. Many times in our lives we are dropped crumpled and ground Into the dirt by the decisions we make and the circumstances that come our way. We feel as tough as we are worthless but no matter what has happened or what will happen you will never lose your value. You are special don't ever forget it"


You may also like my following links. Please visit once.























Friday 16 March 2018

अनजाने कर्म का फल

एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ।
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।
किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।

ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....

बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....

फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"

बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।

यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।

बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।

अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??

ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....

Butterfly

A man, an avid Gardener saw a small Butterfly laying few eggs in one of the pots in his garden.

Since that day he looked at the egg with ever growing curiosity and eagerness.

The egg started to move and shake a little.

He was excited to see a new life coming up right in front of his eyes.

He spent hours watching the egg now.

The egg started to expand and develop cracks.

A tiny head and antennae started to come out ever so slowly.

The man's excitement knew no bounds.

He got his magnifying glasses and sat to watch the life and body of a pupa coming out.

He saw the struggle of the tender pupa and couldn't resist his urge to "HELP".

He went and got a tender forceps to help the egg break, a nip here, a nip there to help the struggling life and the pupa was out.

The man was ecstatic!

He waited now each day for the pupa to grow and fly like a beautiful butterfly, but alas that never happened.

The larvae pupa had a oversized head and kept crawling along in the pot for the full 4 weeks and died!

Depressed the man went to his Entymologist (insect specialist) friend and asked the reason.

His friend told him the struggle to break out of the egg helps the larvae to send blood to its wings and the head push helps the head to remain small so that the tender wings can support it thru its 4 week life cycle.

In his eagerness to help, the man destroyed a beautiful life!

Struggles help all of us, that's why a bit of effort goes a long way to develop our strength to face life's difficulties!

As parents, we sometimes go too far trying to help and protect our kids from life's harsh realities and disappointments.

We don't want our kids to struggle like we did.

Harvard psychiatrist Dr. Dan Kindlon says that over-protected children are more likely to struggle in relationships and
with challenges.

We're sending our kids the message that they're not capable of helping themselves.

To quote clinical psychologist,
Dr. Wendy 's Moral:

"It  is  Our Job  to  prepare  Our  Children  for  the  Road & Not  prepare  the  Road for  Our Children"

Thursday 15 March 2018

इत्र

मथुरा में एक संत रहते थे। उनके बहुत से शिष्य थे। उन्हीं
में से एक सेठ जगतराम भी थे। जगतराम का लंबा चौड़ा
कारोबार था। वे कारोबार के सिलसिले में दूर दूर की
यात्राएं किया करते थे।

एक बार वे कारोबार के सिलसिले में कन्नौज गये। कन्नौज
अपने खुश्बूदार इत्रों के लिये प्रसिद्ध है। उन्होंने इत्र की
एक मंहगी शीशी संत को भेंट करने के लिये खरीदी।

सेठ जगतराम कुछ दिनों बाद काम खत्म होने पर वापस
मथुरा लौटे। अगले दिन वे संत की कुटिया पर उनसे
मिलने गये।

संत कुटिया में नहीं थे। पूछा तो जवाब मिला कि यमुना
किनारे गये हैं , स्नान-ध्यान के लिये।

जगतराम घाट की तरफ चल दिये। देखा कि संत घुटने
भर पानी में खड़े यमुना नदी में कुछ देख रहे हैं और
मुस्कुरा रहे हैं।

तेज चाल से वे संत के नजदीक पहुंचे। प्रणाम करके बोले
आपके लिये कन्नौज से इत्र की शीशी लाया हूँ।

संत ने कहा लाओ दो।

सेठ जगतराम ने इत्र की शीशी संत के हाथ में दे दी।

संत ने तुरंत वह शीशी खोली और सारा इत्र यमुना में डाल
दिया और मुस्कुराने लगे।

जगतराम यह दृश्य देख कर उदास हो गये और सोचा एक
बार भी इत्र इस्तेमाल नहीं किया , सूंघा भी नहीं और पूरा
इत्र यमुना में डाल दिया।  वे कुछ न बोले और उदास मन
घर वापस लौट गये।

कई दिनों बाद जब उनकी उदासी कुछ कम हुयी तो वे
संत की कुटिया में उनके दर्शन के लिये गये। संत कुटिया
में अकेले आंखे मूंदे बैठे थे और भजन गुनगुना रहे थे।

आहट हुयी तो सेठ को द्वार पर देखा।  प्रसन्न होकर उन्हें
पास बुलाया और कहा – ”उस दिन तुम्हारा इत्र बड़ा काम
कर गया।

सेठ ने आश्चर्य से संत की तरफ देखा और पूछा
“मैं कुछ समझा नहीं।

संत ने कहा -- उस दिन यमुना में राधा जी और श्री कृष्ण
की होली हो रही थी।  श्रीराधा जी ने श्रीकृष्ण के ऊपर रंग
डालने के लिये जैसे ही बर्तन में पिचकारी डाली उसी समय
मैंने तुम्हारा लाया इत्र बर्तन में डाल दिया। सारा इत्र पिचकारी
से रंग के साथ श्रीकृष्ण के शरीर पर चला गया और भगवान
श्रीकृष्ण इत्र की महक से महकने लगे।

तुम्हारे लाये इत्र ने श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी की होली में
एक नया रंग भर दिया। तुम्हारी वजह से मुझे भी श्रीकृष्ण
और श्रीराधा रानी की कृपा प्राप्त हुयी।

सेठ जगतराम आंखे फाड़े संत को देखते रहे। उनकी कुछ
समझ में नहीं आ रहा था।

संत ने सेठ की आंखों में अविश्वास की झलक देखी तो
कहा शायद तुम्हें मेरी कही बात पर विश्वास नहीं हो रहा।
जाओ मथुरा के सभी श्रीकृष्ण राधा के मंदिरों के दर्शन कर
आओ , फिर कुछ कहना।

सेठ जगतराम मथुरा में स्थित सभी श्रीकृष्ण राधा के
मंदिरों में गये। उन्हें सभी मंदिरों में श्रीकृष्णराधा की मूर्ति
से अपने इत्र की महक आती प्रतीत हुयी। सेठ जगतराम
का इत्र श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी ने स्वीकार कर लिया था।

वे संत की कुटिया में वापस लौटे और संत के चरणों में
गिर पड़े। सेठ की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली।
और उसे संत जी का अधिकार मालूम हुआ

संत की आंखें भी प्रभू श्रीकृष्ण की याद में गीली हो गयीं।

इसलीये सदैव ध्यान रहे की संत महात्मा भलेही हमारे जैसे दिखते हो रहते हो लेकिन ओ हर वक्त ईश्वर मे मन लगाये रहते है

और हम जैसो के लिये यह अधिकार तब प्राप्त होगा जब हमारी भक्ती बढे नाम सिमरन बढे

*जय श्री राधे कृष्ण*

अवतार

ठाकुर  जी  का  बहुत  प्यारा भक्त  था  जिसका  नाम  अवतार  था वह  छोले  बेचने  का  काम  करता  था उसकी  पत्नी  रोज  सुबह-सवेरे  उठ छोले  बनाने  में  उसकी  मदद   करती थी !

एक  बार  की  बात  है  एक  फकीर जिसके  पास  खोटे  सिक्के  थे  उसको  सारे  बाजार  में  कोई  वस्तु नहीं  देता  हैं  तो  वह  अवतार  के पास  छोले  लेने  आता  हैं !

अवतार  ने  खोटा  सिक्का  देखकर भी  उस  फकीर  को  छोले  दे  दिए।ऐसे  ही  चार-पांच  दिन  उस  फकीर ने  अवतार  को  खोटे  सिक्के  देकर छोले  ले  लिए  और  उसके  खोटे सिक्के  चल  गए !

जब  सारे  बाजार  में  अब  यह  बात फैल  गयी  की  अवतार  तो  खोटे सिक्के  भी  चला  लेता  हैं  पर अवतार  लोगों  की  बात  सुनकर कभी  जबाव  नहीं  देते  थे । अपने ठाकुर  की  मौज  में  खुश  रहते  थे !

एक  बार  जब  अवतार  पाठ  पढ़ कर उठे  तो  अपनी  पत्नी  से  बोले -"क्या छोले  तैयार  हो  गए ?"

पत्नी  बोली -"आज  तो  घर  में  हल्दी -मिर्च  नहीं  थी  और  मैं  बाजार  से लेने  गयी  तो  सब  दुकानदारों  ने कहा  कि--यह  तो  खोटे  सिक्के  हैं और  उन्होंने  सामान  नहीं  दिया !"

पत्नी  के  शब्द  सुनकर  ठाकुर  की याद  में  बैठ  गए  और  बोले-"जैसी तेरी  रज़ा ! तुम्हारी  लीला  कौन  जान सका  हैं !"

तभी  आकाशवाणी  हुई -" क्यों अवतार  तू  जानता  नहीं  था  कि  यह खोटे  सिक्के  हैं !"

अवतार  बोला -"ठाकुर  जी  मै  जानता  था !"

ठाकुर  ने  कहा - "फिर  भी  तूने  खोटे सिक्के  ले  लिए 
ऐसा  क्यूँ  भले  मानुष !

अवतार  बोला -"हे  दीनानाथ ! मैं  भी तो  खोटा  सिक्का  हूँ  इसलिए  मैंने खोटा  सिक्का  ले  लिया  मै  तुम्हारी शरण  मे  आऊँ  तो  तू  मुझे  अपनी शरण  से  नकार  ना  दे !

क्योंकि  आप  तो  खरे  सिक्के  ही  लेते  हो  आप  स्वयं  सब  जानते  हो ! खोटे  सिक्कों  को  भी  आपकी  शरण मे  जगह  मिल  सकें !

थोड़ी  देर  में  दूसरी  आकाशवाणी  हुई -"हे  भले  मानुष ! तेरी  हाज़िरी क़बूल  हो  गयी  हैं  तू  ठाकुर  का खोटा  सिकका  नहीं  खरा  सिक्का हैं !

जो  भी  कर्म  करो  ठाकुर  के  चरणो मे  समर्पित  करते  रहो  फल  के  बारे मे  मत  सोचो  आप  देखना  जिंदगी की  गाडी  कितनी  तेज  गति  से दौडेगी  पलटकर  नही  देखना पडेगा !!

बाली

मित्रों,,,

आज आपको एक ऐसे कथा के बारे में बताने जा रहा हूँ,,

जिसका विवरण संसार के किसी भी पुस्तक में आपको नही मिलेगा,,
और ये कथा सत प्रतिशत सत्य कथा है,,

जय श्री राम, जय श्री राम,,

कथा का आरंभ तब का है ,,

जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ,,
की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा,,
उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी,,

और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा,,

सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस ( वरदान द्वारा प्राप्त ) पुत्र हैं,,

और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है,,

बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था,,
उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया,,
जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी,,

रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा,,

अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था,,

और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई,,

अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था,,

हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था,,

अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था,,

एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था,,

और बार बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो,,
है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो,,
जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे,,

इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था,,

संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी,, राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे,,

बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा,,

और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर,, हे ब्रम्ह अंश,, हे राजकुमार बाली,,
( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो,,

हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो,
फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो,,
अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो,,
इससे तुम्हे क्या मिलेगा,,

तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध मे नही हरा सकता,,

क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा,,
उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी,,

इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर,,

और राम नाम का जाप कर,,
इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा,,
और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे,,

इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर,, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को,,
जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है,,

और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है,,

जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम के,,

और जिस राम की तू बात कर रहा है,
वो है कौन,

और केवल तू ही जानता है राम के बारे में,

मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना,

और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है,,

हनुमान जी ने कहा- प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है,,
उनकी महिमा अपरंपार है,
ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए,,

बाली- इतना ही महान है राम तो बुला ज़रा,,
मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में,,

बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे,,

हनुमान- ए बल के मद में चूर बाली,,
तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा,,
पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा,,

बाली-  तब ठीक है कल     के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा,,

हनुमान जी ने बाली की बात मान ली,,

बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा,,

अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे,,
तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए,,

हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा,,

ब्रम्हा जी बोले- हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान,,
मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो,,

और युद्ध के लिए न जाओ,

हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु,,
बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता,,
परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता,,
और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है,,
जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा,,
अन्यथा सारी विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है,,

तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा- ठीक है हनुमान जी,,
पर आप अपने साथ अपनी समस्त सक्तियों को साथ न लेकर जाएं,,
केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं,,
बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे,,
युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें,,

हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले,,

उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था,,

और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था,,

पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था,,

हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे,,
बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा,,

ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा,,

उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई,,

बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई,,

बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे,
उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया,
बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा,,
उसके शरीर फट कर खून निकलने लगा,,

बाली को कुछ समझ नही आ रहा था,,

तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ,

बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा रहा,,
वो सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दिया,,

सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया,,

कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला- ये सब क्या है,

हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना,,
फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ,

मुझे कुछ समझ नही आया,,

ब्रम्हा जी बोले-, पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तममे समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा,,

बाली- मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही है,,
ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार मे मेरे तेज़ का सामना कोई नही कर सकता,,
पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा,,,

ब्रम्हा जो बोले- हे बाली,

मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा,,
पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके,,

सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते,,

इतना सुन कर बाली पसीना पसीना हो गया,,

और कुछ देर सोच कर बोला- प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां है तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे,,

ब्रम्हा- हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पाएंगे,,
क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नही सह सकती,,

ये सुन कर बाली ने वही हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला,, जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूँ और उनको ललकार रहा था,,
मुझे क्षमा करें,,

और आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया,,

तो बोलो,
पवनपुत्र हनुमान की जय,
जय श्री राम जय श्री राम,,

🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹

कृपया ये कथा जन जन तक पहुचाएं,
और पुण्य के भागी बने,,
जय श्री राम जय हनुमान,
🌹🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🌹

संतोषी सदा सुखी

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  🌷  *प्रेरणास्पद कथा* 🌷

एक दिन एक सेठ जी को अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई लेखाधिकारी को तुरन्त बुलवाया गया। सेठ जी ने आदेश दिया, "मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए, यह कार्य अधिकतम एक सप्ताह में हो जाना चाहिए।" ठीक एक सप्ताह बाद लेखाधिकारी ब्यौरा लेकर सेठ जी की सेवा में उपस्थित हुआ।
सेठ जी ने पूछा- “कुल कितनी सम्पदा है?”

“सेठ जी, मोटे तौर पर कहूँ तो आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ कमाए आनन्द से भोग सके इतनी सम्पदा है आपकी।”
बोला लेखाधिकारी।
लेखाधिकारी के जाने के बाद सेठ जी चिंता में डूब गए, ‘तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मरेगी?’
वह रात दिन चिंता में रहने लगा। तनाव ग्रस्त रहते, भूख भाग चुकी थी, कुछ ही दिनों में कृशकाय हो गए। सेठानी जी द्वारा बार बार तनाव का कारण पूछने पर भी जवाब नहीं देते।
सेठानी जी से सेठ जी की यह हालत देखी नहीं जा रही थी। मन की स्थिरता व शान्त्ति का वास्ता देकर सेठानी ने सेठ जी को साधु संत के पास सत्संग में जाने को प्रेरित कर ही लिए। सेठ जी भी पँहुच गए एक सुप्रसिद्ध संत समागम में। एकांत में सेठ जी ने सन्त महात्मा से मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा।
“महाराज जी! मेरे दुःख का तो पार ही नहीं है, मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मर जाएगी। मेरे पास मात्र अपनी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो, इतनी ही सम्पत्ति है। कृपया कोई उपाय बताएँ कि मेरे पास और सम्पत्ति आए और अगली पीढ़ियाँ भूखी न मरे। आप जो भी बताएं मैं अनुष्ठान, विधी तप जप आदि करने को तैयार हूँ।
"सेठ जी ने सन्त महात्मा से प्रार्थना कि - संत महात्मा जी ने समस्या समझी और बोले- “इसका तो हल तो बड़ा आसान है। ध्यान से सुनो, सेठ! बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है, एक दम कंगाल और विपन्न। न कोई कमानेवाला है और न वह कुछ कमा पाने में समर्थ है। उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो। यदि वह यह दान स्वीकार कर ले तो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा कि तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। तुम्हें अवश्य अपना वांछित प्राप्त होगा।”
सेठ जी को बड़ा आसान उपाय मिल गया। अब कहां सब्र था उन्हें।
घर पहुंच कर सेवक के साथ दस किलो आटा लेकर पहुँच गए बुढिया की झोंपड़ी पर।
“माताजी! मैं आपके लिए आटा लाया हूँ इसे स्वीकार कीजिए।"सेठ जी बोले।
“आटा तो मेरे पास है,बेटा! मुझे नहीं चाहिए।”
बुढ़िया ने स्पष्ट इन्कार कर दिया।
सेठ जी ने कहा- “फिर भी रख लीजिए” l
बूढ़ी मां ने कहा- “क्या करूंगी रख कर मुझे आवश्यकता ही नहीं है।”
सेठ जी बोले, “अच्छा, कोई बात नहीं, दस किलो न सही यह आधा किलो तो रख लीजिए” l
“बेटा!आज खाने के लिए जरूरी,आधा किलो आटा पहले से ही मेरे पास है, मुझे अतिरिक्त आटे की जरूरत नहीं है।” बुढ़िया ने फिर स्पष्ट मना कर दिया , लेकिन सेठ जी को तो सन्त महात्मा जी का बताया उपाय हर हाल  में  पूरा  करना था।
एक कोशिश और करते सेठ जी बोले “तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए।”
बूढ़ी मां ने कहा- “बेटा! कल की चिंता मैं आज क्यों करूँ, जैसे हमेशा प्रबंध होता आया है कल के लिए भी कल ही प्रबंध हो जाएगा।”
इस बार भी बूढ़ी मां ने लेने से साफ इन्कार कर दिया।
सेठ जी  की आँखें खुल चुकी थी,"एक गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी मैं आठवी पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूँ। मेरी चिंता का कारण धन का अभाव नहीं तृष्णा है।"
अब गुरू का उपदेश सुना, हृदय में धारण किया।आत्म कल्याण में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। दुखों को दुर कर सुखी बन गया।
अपने को यह समज कब आयेगी। जो भव्य आत्मा समज कर आचरण करेगा, उसका जीवन सफल होगा।

😄😄 *संतोषी सदा सुखी*😄😄
   😩😩 *दुखी तृष्णावान*😩😩
            
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Strategic Alliances

  Strategic Alliances -  For any achievement gone need the right person on your team.  Sugriv was very keen on this. Very first Sugriva was ...