ब्रह्मा जी श्रीभगवान से कहते हैं - ‘हे देव ! जो लोग आपके उभय चरण - कमलों के प्रसाद का लेथ पाकर अनुगृहीत हुए हैं, वे भक्तजन ही आपकी महिमा के तत्त्व को जान सकते हैं, उनके सिवा अन्य कोई भी चिरकाल तक विचार करने पर भी आपके तत्त्व को नहीं जान सकता ।’ यमराज अपने दूतों से कहते हैं - जो पुरुष श्रीकृष्ण के चरण - कमल के मधु का आस्वादन कर चुकता है वह फिर दुर्गतिप्रद माया के विषयों में कभी अनुरक्त नहीं होता । इसके विपरीत जो आदमी (सांसारिक) कर्मों से ही पाप का नाश करता है वह महामूढ़ है, उसके बंधन का नाश नहीं होता ।
जिसका यश महान पुण्यप्रद है उस मुरारि श्रीकृष्ण के चरण - कमल संसार सागर में नौकारूप हैं । जो लोग उस चरण - कमल नौका के आश्रित हैं, उनके लिए संसार सागर गौके खुर टिके हुए टिके हुए गढ़े के समान है । वे उसी नौका के सहारे परमपद को पहुंच सकते हैं । फिर उन्हें विपत्ति के धाम इस संसार में नहीं आना पड़ता ।
बारह प्रकार के गुणों से युक्त ब्राह्मण यदि भगवान पद्मनाभके चरणकमलों से विमुख हो और एक चाण्डाल जो अपने तन, मन, वचन और कर्म श्रीभगवान के अर्पण कर चुका हो, इन दोनों में ब्राह्मण की अपेक्षा चाण्डाल श्रेष्ठ है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण - भक्त चाण्डाल अपने सारे कुल को पवित्र कर सकता है, परंतु वह बड़े मानवाला ब्राह्मण नहीं कर सकता ।
यमराज अपने दूतों से कहते हैं - जिन भगवान मुकुंद के चरणारविंदों की सर्वत्यागी परहंसगण सब प्रकार की आसक्ति छोड़कर किया करते हैं, उन चरणकमलों के मकरंद रस के आस्वादन से विमुख होकर जो असाधु लोग नरक के पथस्वरूप घर के जञ्जाल में फंसे रहते हैं, उन्हीं को यमपुरी में मेरे पास लाया करो ।
नागपत्नी श्रीभगवान से कहती हैं - हे भगवान ! जो लोग आपके चरनो की धूलि को प्राप्त हो जाते हैं वे फिर स्वर्ग, चक्रवर्ती राज्य, पाताल का राज्य, ब्रह्मा का पद और योग की सिद्धि की तो बात ही क्या है मुक्ति की भी इच्छा नहीं करते ।
भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियां द्रौपदी से कहती हैं - हे साध्वी ! हमें पृथ्वी के साम्राज्य, इंद्र के राज्य, भौज्य - पद, सिद्धियां, ब्रह्मा के पद, मोक्ष या वैकुण्ठ की भी इच्छा नहीं है, हम तो केवल यहीं चाहती हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की कमला - कुच - कुंकुम की सुगंध से युक्त चरणधूलि को ही सदा अपने मस्तकों पर लगाती रहें । श्रीकृष्ण की चरण - रज के सामने सब तुच्छ हैं ।
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