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Tuesday 13 October 2015

कैसे खुद को Positive रखें



रामु नामक आदमी एक सेठ की दुकान पर नौकरी करता था। वह बेहद ईमानदारी और लगन से अपना काम करता था। उसके काम से सेठ बहुत प्रसन्न था और सेठ द्वारा मिलने वाली तनख्वाह से रामूका गुज़ारा आराम से हो जाता था। ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे। 

एक दिन रामु बिना बताए काम पर नहीं गया। उसके न जाने से सेठ का काम रूकगया। तब उसने सोचा कि रामु इतने दिनों से ईमानदारी से काम कर रहा है। मैंने कबसे इसकी तन्ख्वाह नहीं बढ़ाई। इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा? 

सेठ ने सोचा कि अगर रामु की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत और लगन से काम करेगा। उसने अगले दिन से ही उस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी। रामु को जब एक तारीख को बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया। लेकिन वह बोला कुछ नहीं और चुपचाप पैसे रख लिये। धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी। 

कुछ महीनों बाद रामु फिर एक दिन ग़ैर हाज़िर हो गया। यह देखकर सेठ को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- कैसा कृतघ्न  है रामु। मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद तक दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी। इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह नहीं सुधरेगा! और उसी दिन सेठ ने बढ़ी हुई तनख्वाह वापस लेने का फैसला कर लिया। 

अगली 1 तारीख को रामु को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। लेकिन हैरानी यह कि इस बार भी रामु चुप रहा। उसने सेठ से ज़रा भी शिकायत नहीं की। 

यह देख कर सेठ से रहा न गया और वह पूछ बैठा- बड़े अजीब आदमी हो भाई। जब मैंने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद पहले तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले। और आज जब मैंने तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम कर के दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है? 

रामु ने जवाब दिया- जब मैं पहली बार ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था। उस वक्त आपने जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तो मैंने सोचा कि ईश्वर ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ। ...जिस दिन मैं दोबारा ग़ैर हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं.... फिर मैं इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ? 

यह सुनकर सेठ गदगद हो गया। उसने फिर रामु को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। उसके बाद उसने न सिर्फ रामु की तनख्वाह पहले जैसे कर दी, बल्कि उसका और ज्यादा सम्मान करने लगा।

निष्कर्ष :
हमारे जीवन में अक्सर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की घटनाएं होती रहती हैं। जो आदमी एक अच्छी घटना से खुश होकर अनावश्यक उछलता नहीं, और नकारात्मक घटनाओं पर अनावश्यक दु:ख नहीं मनाता और हर दशा में अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखते हुए सच्ची लगन और ईमानदारी से कार्य करता रहता है, वही आदमी जीवन में स्थाई सफलता प्राप्त करता है।



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