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Tuesday 17 February 2015

बनकर ब्रज की नारी

बनकर ब्रज की नारी

एक दिन वो भोले भण्डारी. बनकर ब्रज की नारी, गोकुलमे आ गए है।
पार्बतीजी मनाके हरी, ना माने त्रिपुरारी, गोकुलमे आ गए है ॥ टेर ॥

पार्बती से बोले मै भी चलूँगा संगमे।
राधा संग शाम नाचे, मै  भी नाचूँगा तेरे संगमे।।
रास रचेगी बृज में भरी, मुझे दिखावो प्यारी ॥ १॥ गोकुलमे----

ओ मेरे भोले स्वामी, कैसे लेजौ तोहे संगमे।
शामके सिवा न कोई, दूसरा पुरुष उस रासमे।
हसी करेगी बृजकि नारी, मानो बात हमारी ॥ २ ॥ गोकुलमे ----

ऐसा बनादो मुझे, जाने न कोई इस राज को।
मै हु सहेली तेरी, ऐसा बताना बृजराजको ।
बिंदिया पहनकर सदी, चल चले मतवाली ॥ ३ ॥ गोकुलमे---

हस के सतीने कहा, बलिहारी जाऊ इस रूपमे।
एक दिन तुम्हारे लिए आये थे, मुरारी इस रूपमे।
मोहनी रूप बनाया मुरारीने, अब है तुम्हारी बारी ॥ ४ ॥ गोकुलमे ----

देखा मोहनने, समझ गए वो सब बातरे ।
ऐसी बजाई बंसी रे, सुध बुध भूले भोलेनाथरे
सिरसे खिसक गयी तब सदी, मुस्काये गिरधारी ॥ ५ ॥ गोकुलमे----

दीनदयालु तेरा तबसे, गोपेश्वर हुआ नामरे।
भोले बाबा तेरा, वृन्दावन में धामरे।
भजन मंडली कहे ओ त्रिपुरारी, रखियो लाज हमारी ॥ ६ ॥ गोकुलमे----




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