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Saturday 17 January 2015

जिसको देखा नहीं उसे सब खुदा कहते है.





रब ने नवाजा हमें जिंदगी देकर;

और हम शौहरत मांगते रह गये;

जिंदगी गुजार दी शौहरत के पीछे;

फिर जीने की मौहलत मांगते रह गये।



ये कफन, ये जनाज़े, ये कब्र,

सिर्फ बातें हैं मेरे दोस्त,

वरना मर तो इंसान तभी जाता है

जब याद करने वाला कोई ना हो...!!



ये समंदर भी तेरी तरह खुदगर्ज़ निकला,

ज़िंदा थे तो तैरने न दिया

और मर गए तो डूबने न दिया . .



क्या  बात करे इस दुनिया की

हर शख्स के अपने  अफसाने हे

जो सामने हे उसे लोग बुरा कहते हे

जिसको देखा नहीं उसे सब खुदा कहते है.
  
हरिवंश राय बच्चन
  
बोध:

यह कविता बोध लेने के लिए ही है। ईश्वर हमे जीने के लिए एक खूबसुरात जिंदगी देता है।  उस जिन्दगीका धन्यवाद देना चाहिए। पर हम ऐसा नहीं करते। इंसान को दौलत शोहरत चाहिए रहती है और वह उसके पीछे एक अथक दौड़ लगाता है। पूरी जिंदगी इसीतरह बिता देता है और जब शरीरो को बिमारीया घेरने लगती है तब उसे याद आता है की वो तो जिना ही भूल गया और तब वो उपरवाले को याद करता है।
  
खैर जगो तब सवेरा! अगर आप अपनी जवानी में जाग गए तो बहोत अच्छा। और  अगर आप अब बूढ़े हो गए हो बीमार हो गए हो तो भी कोई बात नहीं। आप अभी इसी समयसे ईश्वरका धन्यवाद दीजिये हर उस चीज के लिए जो अपने कमाई है, जो आपको खुश करती है, जो आपको सुख देती है, जो आपको आजभी मिल रही है। अगर आप सुबह उठ गए है तो कहिये, "हे भगवान, इस खबसूरत दिन का धन्यवाद!"
  
जिन्दगीमे दौलत शोहरत बहोत कमा ली अब उन सबको समय दो जो आपके साथ हमेशा से थे। आपकी पत्नी, बच्चे, दोस्त आदि सब लोग। उन्होंने आपके लिए जो कुछ भी किया या आपकी जो भी  बात मानी उन सब बटके लिए उन्हें धन्यवाद दीजिये। और फिर देखिये जो भी बची हुई जिंदगी है कैसे खुशनुमा पलोसे भर जाती है।
  
और एक बात अपनी हर पीड़ा के साथ ईश्वरको याद कीजिये और मन ही मन माफ़ी मांगिये अपने उन बुरे कर्मो के लिए जो जाने अंजाने में आपके हाथो हुए है।
  
समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसलिए धन्यवाद!




इज्जत सिर्फ पैसे की हैं इंसान की नहीं ..


पुराने ज़माने की बात है। किसी गाँव में एक शेठरहेता था। उसका नाम था नाथालाल शेठ। वो जब भी गाँव के बाज़ार से निकलता था तब लोग उसे नमस्ते या सलाम करते थे , वो उसके जवाब में मुस्कुरा कर अपना सिर हिला देता था और बोहत धीरे से बोलता था की " घर जाकर बोल दूंगा "

एक बार किसी परिचित व्यक्ति ने शेठ को ये बोलते हुवे सुन लिया। तो उसने कुतूहल वश शेठ को पुछ लिया कि शेठजी आप ऐसा क्यों बोलते हो के " घर जाकर बोल दूंगा "

तब शेठ ने उस व्यक्ति को कहा, में पहेले धनवान नहीं था उस समय लोग मुझे 'नाथू ' कहकर बुलाते थे और आज के समय में धनवान हु तो लोग मुझे 'नाथालाल शेठ' कहकर बुलाते है। ये इज्जत मुझे नहीं धन को दे रहे है|
इस लिए में रोज़ घर जाकर तिज़ोरी खोल कर लक्ष्मीजी (धन) को ये बता देता हु कि आज तुमको कितने लोगो ने नमस्ते या सलाम किया। इससे मेरे मन अभिमान या गलतफैमी नहीं आती कि लोग मुझे मान या इज्जत दे रहे है। ...

 इज्जत सिर्फ पैसे की हैं इंसान की नहीं ..

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Friday 16 January 2015

इतनी ऊँचाई न देना प्रभु


इतनी ऊँचाई न देना प्रभु कि,
धरती पराई लगने लगे l

इनती खुशियाँ भी न देना कि,
दुःख पर किसी के हंसी आने लगे ।

नहीं चाहिए ऐसी शक्ति जिसका,
निर्बल पर प्रयोग करूँ l

नहीं चाहिए ऐसा भाव कि,
किसी को देख जल-जल मरूँ

ऐसा ज्ञान मुझे न देना,
अभिमान जिसका होने लगे I

ऐसी चतुराई भी न देना जो,
लोगों को छलने लगे ।

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