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Saturday 11 October 2014

करवा चौथ की कहाणी


करवा चौथ की कहाणी

एक सावकार हो। बिक सात बेटा और एक बेटी ही। बेटी घणी लाडली ही । सब भाई बेन रा ब्याव हुइग्या हा । कातीको महिनो आयो । करवा चौथ रो त्योहार आयो । सगळी भोजाया बरत करी जणा नणंद बोली, " म भी यो बरत करीस। " बिका भाई बोल्या, " बेन थारसू नही होबालो तू मती कर । " बेन मानी कोणी । बा बरत करी ।

दिन बितग्यो शाम हुईगी । साब भाई खेता सू आबा लाग्या । कोई बोर लायो, कोई काचरो लायो, कोई बाजराको सिदयो लायो, कोई आवलो लायो । बेन न खावाको कयो। बा कयो, "म्हारो तो बरत ह , म कोणी खावू। " जणा भाई पुछ्या , " बेन थारो बरत कणा छुटी?" बेन बोली, " रातरा चाँद निकली, म चाँद की पुजा करीस, चौथ मातारी पूजा करीस करवो पिया फेर म खाइस। "

भाई बोल्या, " चाँद न उगबाण काई देर लाग। अबार उगावा चाँद। " एक भाई लकड़्या लेयर डूंगर ऊपर चढग्यो और लकड़्या शिलगाय दी। एक भाई उचा पेड़ पर चढग्यो और महीन जाली जलता लकड़्या रा सामन पकड्यो। एक भाई घर आयो और बेन न बोल्यो, "बाई बाई चाँद उग आयो। चाल चाँद देखबान। "

बेन अपरा भोजयान बोली, "चालो चाँद उग आयो। " जना भोजया  बोली, "बाईजी थाको  चाँद उग्यो होइस म्हाको नई। थे जाओ म्हे तो नहीं आवा। " जना  भाई बोल्यो, " बाई तू थारी चाँद देखले, अ कराई  देखी। जल्दी चाल। "

बेन चौथ माता री  पूजा करी। और पुजारी थाली लेयन चाँद न अरग देबान गयी। भाई बतायो , "बाई देख डूंगर ऊपर चाँद उग्यो ह। " चाँद न अरग डेयर बा आई आई और बोली, "भोजाई मन करवो पिवणु ह। " भोजाई बिन करवो पिलाई।
१) करवो पि ये करवो पी , म्हारी बाई करवो पी।
२) करवो पि ये करवो पी , सात भाया की बेन  करवो पी।
३) करवो पि ये करवो पी , घनी भुक्यालु  करवो पी।
४) करवो पि ये करवो पी , बरत भाणबाली करवो पी।
५) करवो पि ये करवो पी , डूंगर ऊपर लाय लगानी  करवो पी।
६) करवो पि ये करवो पी , चालनी म चाँद देखबाली  करवो पी।
७) करवो पि ये करवो पी , घनी तिसालु  करवो पी।

इशो बोलर करवो पायो और बेन जीमण बेठी। पहिलो कवो खारो  लाग्यो , दूजा क़वाम  केस आयो , तीजो कवो खायो तो पती समाय गयो इशी खबर आई। कवो थूक कर बा थाली सरकाय दिनी और सासर जावन निकली। बिकी माँ बिन रुकयो और पेटी  मायसु बेस निकालने  बिन ओढ़ायो।  पेटी मायसु  काळो बेस निकल्यो।  बा काळो  बेस और काली चोळी पेनर निकल गयी।  बिकी माँ बोली, " रास्ताम पेड़ पौधा,कीडा,जिनवर, मिनख जो भी मिली सबरा पगा  लागजे। "

बेन निकली।  माँ बोल्यो ज्यान रास्ताम जो भी मिल्यो सबरा पगा लगी। सासर पूगी। सबरा पगा लागि। पलना म जेठुती सूती हि। बीरा भी पगा लागि , जना दूध पिवता जेठुतीन वाचा फूटी और बा बोली, "हे बरत भानबली , म थन काई आशीर्वाद देवू। म्हारा पगा केन लागी ?" जना बा बोली, "सवाग भाग अमर रई इशो आशीर्वाद दे देवो। " जेठुति आशीर्वाद दिनों।

जठ पाती न सुवण्यो  बठ बा गयी। बा धनी न लेजाबा कोणी देव ही।  पर गावका लोग धनी को शरीर लेने नदी किनार स्मशान म लेकर गया। बा धनि का लार लार नदी किनार गयी। बठ बा धनी न जलाबा दियो कोणी और नदी किनार म-योड़ा धनि न लेयर झोपड़ी बाँध कर रेवा लागि।

यान करता करता दिन बीतता गया। एक दिन माहका महिनाकी चौथ आई। गाजती घोरती चौथ माता आई।  माता झोपडीन लाथ मारी तो झोपडीको खुणो  उडग्यो। बेन डरती रोवती चौथ माता का पग पकड़ी। जना चौथ माताजी बोल्या , "पापी, दुष्टणी , बरत भानबली, म्हारा पग क्यों पकड्या?" जना बा बोली, "माता थाका पग पकङु नहीं तो कुनका पकङु?" जना चौथ माता बोली, "म्हारा पग छोड़ दे। म्हारा बीच म्हारी बड़ी बेन ह  बैसाख की चौथ बा थारा धनीन उठायर बेठतो करिस। "

काई दिन बाद बैसाख की चौथ आई। गाजती घोरती बैसाख की चौथ माता आई और झोपडीन लेथ मरण दुसरो खुनो उड़ाय दियो। बा आई और बैसाखरा चौथ माता का पग पकड्या।  जना माता बोली, "पापी, दुष्ट, बरत भानबाली म्हारा पग क्यों पकड्या। " बा बोली, "माता म्हारा धनीन उठायर बेठतो करो। " जना बैसाख की चौथ माता बोली, "म्हारा पग छोड़ दे। म्हारा बीच भादवा की चौथ माता बड़ी बेन ह। बा थारा धनी न जीवतो करिस।"

दिन बीतता गया और एक दिन भादवा की चौथ आई।  भादवा की चौथ माता गाजती घोरती आई और लाथ मारकर झोपडीको तीसरो खुनो उडाय दियो। बा माता का पग पकड्या और बोली, "माता म्हारा धनी  न जीवतो करो। " जना भादवा की चौथ माता बोली, "पापी, दुष्टनी , बरत  भांनबाली म्हारा पग छोड़ दे। कार्तिक महीना की करवा चौथ म्हारी बड़ी बेन ह। बा थारा धनी  न जीवतो करिस। बीरा पग छोड़जे मति। "

काई दिन बाद कार्तिक महिनारी चौथ आई। गाजती घोरती चौथ माता आई और झोपडीन लाथ मारी तो पूरी झोपड़ी उड़गी। बा आई और माताका पग पकड़ी और बोली, "माता मन माफ़ करो। म्हारा पती न जीवतो करो। " जना माता बोली, "तू बरत भंग क-यो जीरा लिय इत्तो दुःख हुयो। पर थारी जेठुति थन सदा सवागन को आशीर्वाद दियो जिका लिय म थारा धनी न जीवतो करू। " अमृत को छाँटो देयर बीको पती  जीवतो का-यो  और चौथ माता चली गयी।

धनी  उठन बेठ्यो। बा सासु सुसरान कयार भेज्यो , "थाका बेटा जीवता हुया। म्हान लेवण आवो। पली  सगळा जना ई बात न झूटो मान्या। पर कोई कयो , "जायने  तो देखा काई सच्ची ह मालूम पड़ी। " टुटोरा नगाड़ा , फुटेरा ढोल , टेढ़ा मुंदरी गितरण्या और ज्वारिका आखा लेयर ये सब लोग नदी किनारा गया। बठ पुगताई ढोल नगाड़ा सुधरगया , टेढ़ा मुंडारी गीतारण्या को मुंडो शिदो हुयग्यो। ज्वारिका आखा मोत्यारा हुयग्या। पच बाजा गाजा सु दोयाका सामां लिया और राजी ख़ुशी सगळा घर लौट आया। बा घर आताही जेठुति  रा पगा लागि।

हे चौथ माता बिन ज्यान टूटी ब्यान सगळां  न टूटज्यो सवाग भाग अमर राखज्यो। खोटी री खरी , अधूरी की पूरी करज्यो।







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