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Friday 22 August 2014

गौ पुकार


गौ पुकार 

हे हिन्दुवासी हिन्दू, मुस्लिम, व हे ईसाई।
शैवी , बी शक्तिपूजक, जैनी व बौद्ध भाई।।

हम धर्मकी तुम्हारी है सेवनीय माता।
है दुग्ध ही की धाराओंका सत्य नाता।।

अपने अपर दुःख की कहती है हम कहानी।
हो दत्त चित्त हो सुनलो अभिमान त्याग मानी।।

खा करके घास भूसा पि करके ताल पानी।
हम कर रही गुजारा यह बात जगकी जानी।।

पर तुमको है पिलाती अमृतकी शुद्ध धारा।
बल वीर्य आदि बढ़ता सदा तुम्हारा।।

पूरी जलेबी हलुवा जिसके अकड़के खाते।
सोचो तो शुद्ध जिसे किसकी कृपा से पाते।।

बर्फी व मालपुआ घृत दूध अरु मलाई
ये न्यामते है बोलो तुमने कहासे पायी।।

उपकार नित्य जितने करती हु मै  तुम्हारे।
सोचो तो कौन करता सिवा  हमारे।।

बच्चे हमारे प्यारे हलको सदा चलाते।
उत्पन्न अन्न उत्तम करके तुम्हे खिलाते।।

जीवित दशामे तुमको अनमोल रत्न देती।
बदलेमें उसके केवल मै घास पात लेती।।

मरने पर मई अपने तन का चाम तक देती।
सहती हुँ दुःख खुद पर तुमको सौख्य देती।।

गोबर हमारा पृथ्वी को शुद्ध स्वच्छ करता।
अरु मूत्र भी हमारा रोगको जड़से हरता।।

भारतमे होती जब थी सेवा सदा हमारी।
तब कोईभी न रहता था देशमे दुखारी।।

बल बुद्धि आदि धन से पूरा था देश हमारा।
तकता न था पराये का कभी ये सहारा।।

भगवान कृष्ण प्यारे गोपालसे वे कहांते।
शुभ भक्तिपूर्ण मेरे गन को सदा वे गाते।।

ले काखमे कमरिया कर मध्य लखुटी धारे।
फिरते थे जंगलोमे पीछे सदा हमारे।।

करते थे प्यार पूरा धरते थे हात तन पर।
रहता था ध्यान मेरा दिन रात उनके मनपर।।

तिसभर भी हाय , तुमने महिमा न  जानी।
सोचो तो ध्यान करके क्यों बुद्धि है हिरानी।।

मेरे बिन तुम्हारा कुछ भी न काम होंगा।
मेरे बिन तुम्हारा जीवन समाप्त होगा।।

भारतमे मान पूरा रहता अगर हमारा।
तो आज हाल दुखमय होता न यह तुम्हारा।।

यदि हम कष्ट पाती क्यों रोग दुष्ट आता।
विकराल कैसे क्यों भारत रुलाया जाता।।

ऋषियोंका अंश तुममे कुछ शेष क्या नहीं है।
जो इस समय भी तुमने यु मौनता गहि है।.

खट  खट छुरी हाय गर्दन पर हमारे चलती।
आखे तुम्हारी तिसपर भी तनिक न खुलती।।

हम दुःख से तड़पती तुम हो मजे उड़ाते।
माताके कष्ट परभी कुछ ध्यान तुम न लाते।।

हे हिंदके निवासी प्रिय पुत्र हमारे।
पर कुल कलंक जन्म बैठे हमें बीसारे।।

यदि भारतीय बच्चे कर्तव्य अपना पाले।
तो घोर यातनाओंसे वे हमें बचाले।।

उनके बलिष्ट हाथो रक्षा हमारी होगी।
सब  आपदा हमारी तब क्यों न नष्ट होगी।।

पर मानु सेवा करना तुम हाय भूल बैठे।
रहते सदाही हो तुम निज पेंठ में ही पेंठे।।

तो इसप्रकार कब तक आनंद पा सकोगे।
यदि हम न रह सकेंगी तुम भी न रह सकोगे।।

भारतके  देशनेता तुमने कभी विचारा।
पहले हमें बचाना है कर्त्तव्य तुम्हारा।।

प्रतिवर्ष तुम सभा मे प्रस्ताव पास करते।
पर मेरी आपदा पर कुछ भी न ध्यान धरते।।

उन्नतिकी सभी डींगे व्यर्थ है तुम्हारी।
जबतक न रक्षा जी जान से हमारी।।

उपकारी जीव है हम मरने का दुःख नहीं है।
इस अति विशाल जग में कोई अमर नहीं है।.

पर शोक है यह की भारतमे बिना हमारे।
बिन अन्न के कैसे रहेंगे सुवन तुम्हारे।।

घी दूध जब हमारा अप्राप्य होगा।
सोचो उन्हें तो तब फिर क्या क्या न कष्ट होगा।।

किस भावसे तुम्हे वे याद नित करेंगे।
गोवंश कष्टकारी तब किसको वे कहेंगे।।

गो वधको बंद करना कर्त्तव्य है तुम्हारा।
फिर ध्यान देके मनो इतना वचन हमारा।।

धन दे दिलाके मनसे करदो गोशाला जारी।
इससे भी प्राण  रक्षा होगी बहुत हमारी।।

सब अपने अपने घरमे एक एक घड़ा रखलो।
नित एक एक मुठ्ठीभर अन्न  उसमे डालो।।

जब इस प्रकार पूरा होव घड़ा भरकर।
तब भेज दो उसे तुम गोशाला हो जहा  पर।.

यदि यह न कर सको तो प्रतिमास आयमेसे।
कुछ दान करदो हमको चल जाए काम ऐसे।।

गृहस्थ और सारे गौओंको पास रक्खे।
गोवंशकी हो रक्षा निजमे सुधाको चक्खे।।

जब इस प्रकार होंगी रक्षा सदा हमारी।
तब देश क्यों न होंगे सब भातिसे सुखारी।।

भारतनिवासी हिन्ज तब पूर्ण शक्तिवाले।
घी दूधके बहेंगे इस देशमे पनाले।।

तुम सुन चुके अब सारा कथन हमारा।
अब सोच मनमे लेना निज हानि लाभ सारा।।

सारा विलाप हमने अपना तुम्हे सुनाया।
अरु कामका भी हमने शुभ मार्ग है दिखलाया।।

अब काम कर दिखाना कर्त्तव्य है तुम्हारा।
संसारमे तुम्हारा ही है हमें सहारा।।



गो ब्राह्मण प्रतिपालका बिरुद धरे भूपाल।
पर गो विप्रानकी कभी लते न सार संभाल।।

स्वारथ अरु परमार्थ हिट गौअन को कर पक्ष।
गोवध रोकने के लिए पुराण देवे लक्ष।।

हालत सुधरे हिन्द की तर तिजूरी होय।
सकल सुफल हो कामना पर नहीं सोचत कोय।।

जग जीवन गो मात है सकल सुखोकी खान।
याते गौका प्रेमसे करो सदा सम्मान।।

गोकि सेवा भक्तिसे सुगति होत स्वाधीन।
धेनु वृद्धि के ध्यान में  सदा रहो लवलीन।।

पूज्यपाद श्री स्वामी कमलेशानन्दजी महाराज की भजन त्रिवेणीसे सादर समर्पित 





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