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Thursday 31 August 2017

मेहंदी राचणी


मेहंदी राचणी रो बाग लगाओ रसिया, मेहंदी राचणी।। टेर।। 

कंकर जडियो टीको म्हारा सूसराजी घडावे 
सासुजी लाय पेहराव रसिया, मेहंदी राचणी ----- ।। १।। 

बहियांन चूडलो म्हारा जेठजीं घडावे
भाभीजी लाय पेहरा रसिया मेहंदी राचणी ----- ।। २।। 

कंकऱज़डी राखी म्हारा ननदोईजी घडावे,
बाईजी लाय पेहरा रसिया मेहंदी राचणी ----- ।। ३।। 

तारा जडी चूँदड म्हारा बीराजी मुलावै
नख-याळी भावज ओढावे रसिया मेहंदी राचणी ----- ।। ४ ।।  

औरारी मेंदी म्हारे दाय न आवे
मांडे म्हारे लाल दिवरानी रसिया मेहंदी राचणी ----- ।। ५ ।। 

पेहर ओढ धन महलामं पधा-या 
साहेबजी निरखे रुप रसिया मेहंदी राचणी ----- ।। ६ ।। 

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Wednesday 30 August 2017

राई लूण


उड़रे हंस सिंदूर बर्णा, पावणडा चार बुलाव ओ 
काका बाबा मावसा सखीजाभणरा जाया बीर ओ 
उड ये बन री कोयली, पावणड्याचार बुलाय ओ 
काकी बडीया मावसी  सखी जामनरी जायी बेन ओ 
आँगन खुँटयो खेर को, खाती बाई प्यारु रा दास ओ 
आँगन बुदल्यों तेल को, तेलीबांई कौशल्यारा दास ओ 
आँगन भाजी मेथी की, माली बाई सुमित्रारा दास ओ 
आँगन बरतन खडखड्या नाई बाईं विनीता रा दास ओ 
आँगन मुचड्या मचमची मोची-बाई नुपुर का दास ओ 
आँगन खाजा खरखरा, राजा बाई बनडीरा बाप ओ 
आँगन केसरी घुल रही, केसरीया लांडलड़िरा कंत ओ 
राई मुंगी मालव, सखी सांबर मुगो लूण ये 
भुआ बाई मूंगा आरत्या सखी बहन बीराजीरं ब्यावये
बेन बुलत्व बापर झबुकर लूण उतारसी जोडी इबछल राख 
दोय पापड दोय बडिया
म्हारी बिरद सुहानी होय ओ 
लोग केवंता म्हें सुन्या 
*पाण्डुरंगजी सूं ब्यावन होय ओ 
आओ लोगा देख ल्यो 
म्हारी बिरद सुहानी होय ओ
लोगा री चिती घर पडी
म्हारी बिरद सुहानी होय यो
*पाण्डुरंगजी की जगह बींदराजा 
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Monday 28 August 2017

सांजा का गीत


ये बाई सांजा  केउक सांजडी, तु कठे लगाई अत्ती वार ||१|| 
ये बाई गई थी सुरजजीरो पोळा राणादेजी नार ||२|| 
ये बाई गई थी बिनायकजीरी पोळा रिद सिददेजी नार, 
ये बाई देई देवता घ बसै वारे मोती तपे लीलाड ||३|| 
ये बाई मोती मोती गीर पडेवारे लाला तपे लीलाड
ये बाई देई *कमलकिशोरजी घर बसै वारे मोती तपे लिलाड़ ||४|| 
ये बाई मोती मोती गीर पडेवारे लाला तपे लीलाड
ये बाई देई **नरेन्द्रजी घर बसै वारे मोती तपे लिलाड़ ||४|| 
ये बाई मोती मोती गीर पडेवारे लाला तपे लीलाड
ये बाई देई ***विमलकुमारजी घर बसै वारे मोती तपे लिलाड़ ||४|| 

* कमलकिशोजी के जगह घरके सभीके नाम लेना।  
** नरेन्द्रजी के जगह सभी जवाइयो के नाम लेना। 
*** विमलकुमारजीके जगह सभी माहरदारोके नाम लेना। 
सभी के नाम अलग अलग लेके साथ ये लाइन गाना। 

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Saturday 26 August 2017

गाइये गणपति जगवंदन |

गाइये गणपति जगवंदन |

शंकर सुवन भवानी के नंदन

गाइये गणपति जगवंदन
सिद्धि सदन गजवदन विनायक |

कृपा सिंधु सुंदर सब लायक॥

गाइये गणपति जगवंदन
मोदक प्रिय मुद मंगल दाता |

विद्या बारिधि बुद्धि विधाता॥

गाइये गणपति जगवंदन
मांगत तुलसीदास कर जोरे |

बसहिं रामसिय मानस मोरे


गाइये गणपति जगवंदन
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Friday 25 August 2017

मैं अपने पोते को सोने के गिलास में दूध पीते देखना चाहती हूं।

काफ़ी समय पहले की बात है एक गांव में एक अंधी बुढ़िया रहती थी। वह गणेश जी की परम भक्त थी। आंखों से भले ही दिखाई नहीं देता था, परंतु वह सुबह शाम गणेश जी की बंदगी में मग्न रहती। नित्य गणेश जी की प्रतिमा के आगे बैठकर उनकी स्तुति करती। भजन गाती समाधि में लीन रहती। गणेश जी बुढ़िया की भक्ति से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा यह बुढ़िया नित्य हमारा स्मरण करती है, परंतु बदले में कभी कुछ नहीं मांगती।

भक्ति का फल तो उसे मिलना ही चाहिए। ऐसा सोचकर गणेश जी एक दिन बुढ़िया के सम्मुख प्रकट हुए तथा बोले माई, तुम हमारी सच्ची भक्त हो। जिस श्रद्धा विश्वास से हमारा स्मरण करती हो, हम उससे प्रसन्न हैं। अत: तुम जो वरदान चाहो, हमसे मांग सकती हो।

बुढ़िया बोली प्रभो! मैं तो आपकी भक्ति प्रेम भाव से करती हूं। मांगने का तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। अत: मुझे कुछ नहीं चाहिए। गणेश जी पुन: बोले हम वरदान देने के लिए आए हैं। बुढ़िया बोली हे सर्वेश्वर, मुझे मांगना तो नहीं आता। अगर आप कहें, तो मैं कल मांग लूंगी। तब तक मैं अपने बेटे बहू से भी सलाह मशविरा कर लूंगी। गणेश जी कल आने का वादा करके वापस लौट गए।

बुढ़िया का एक पुत्र बहू थे। बुढ़िया ने सारी बात उन्हें बताकर सलाह मांगी। बेटा बोला मां, तुम गणेश जी से ढेर सारा पैसा मांग लो। हमारी ग़रीबी दूर हो जाएगी। सब सुख चैन से रहेंगे। बुढ़िया की बहू बोली नहीं आप एक सुंदर पोते का वरदान मांगें। वंश को आगे बढ़ाने वाला भी, तो चाहिए। बुढ़िया बेटे और बहू की बातें सुनकर असमंजस में पड़ गई।

उसने सोचा यह दोनों तो अपने-अपने मतलब की बातें कर रहे हैं। बुढ़िया ने पड़ोसियों से सलाह लेने का मन बनाया। पड़ोसन भी नेक दिल थी। उसने बुढ़िया को समझाया कि तुम्हारी सारी ज़िंदगी दुखों में कटी है। अब जो थोड़ा जीवन बचा है, वह तो सुख से व्यतीत हो जाए। धन अथवा पोते का तुम क्या करोंगी! अगर तुम्हारी आंखें ही नहीं हैं, तो यह संसारिक वस्तुएं तुम्हारे लिए व्यर्थ हैं। अत: तुम अपने लिए दोनों आंखें मांग लो।

बुढ़िया घर लौट आई। बुढ़िया और भी सोच में पड़ गई। उसने सोचा कुछ ऐसा मांग लूं, जिससे मेरा, बहू बेटे- सबका भला हो। लेकिन ऐसा क्या हो सकता है? इसी उधेड़तुन में सारा दिन व्यतीत हो गया। बुढ़िया कभी कुछ मांगने का मन बनाती, तो कभी कुछ, परंतु कुछ भी निर्धारित कर सकी। दूसरे दिन गणेश जी पुन: प्रकट हुए तथा बोले आप जो भी मांगेंगे, वह हमारी कृपा से हो जाएगा। यह हमारा वचन है। गणेश जी के पावन वचन सुनकर बुढ़िया बोली हे गणराज, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो कृप्या मुझे मन इच्छित वरदान दीजिए। मैं अपने पोते को सोने के गिलास में दूध पीते देखना चाहती हूं।

बुढ़िया की बातें सुनकर गणेश जी उसकी सादगी सरलता पर मुस्कुरा दिए। बोले तुमने तो मुझे ठग ही लिया है। मैंने तुम्हें एक वरदान मांगने के लिए बोला था, परंतु तुमने तो एक वरदान में ही सबकुछ मांग लिया। तुमने अपने लिए लंबी उम्र तथा दोनों आंखे मांग ली हैं। बेटे के लिए धन बहू के लिए पोता भी मांग लिया। पोता होगा, ढेर सारा पैसा होगा, तभी तो वह सोने के गिलास में दूध पीएगा। पोते को देखने के लिए तुम जिंदा रहोगी, तभी तो देख पाओगी। अब देखने के लिए दो आंखें भी देनी ही पड़ेंगी।’ 

फिर भी वह बोले जो तुमने मांगा, वे सब सत्य होगा। इतना कहकर गणेश जी अंर्तध्यान हो गए। कुछ समय पाकर गणेश जी की कृपा से बुढ़िया के घर पोता हुआ। बेटे का कारोबार चल निकला तथा बुढ़िया की आंखों की रौशनी वापस लौट आई। बुढ़िया अपने परिवार सहित सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी।

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