चैत्र का महिना आया. तब गौरादेजीकी (पार्वती) मायके जाने की इच्छा हुई.
फिर उन्होने ईसरजी (महादेव) को पुछा, "ईसरजी मुझे पिहर जाने की इच्छा है."
तब ईसरजी ने कहा, "मै भी साथ चलता हु."
ईसरजी बोले, "घुंघट निकाल लो."
गरमी का बहाना बनाते हुए गौरादे बोली, "महाराज मुझे सोलह दिन का पीहर वास दो. आप चैत्र शुद्ध दुज के दिन मतलब सिंजारे के दिन मुझे लेने आ जाना."
और गौरादे पीहर चली गई. वो दिन चैत्र कृष्ण प्रतीपदा का था. ईसलिए उस दिन से गौर की पुजा करते है. सिंजारे का दिन आया. ईसरजी हिमालय अपने ससुराल पहोच गये. जवाई मेहमान आए इस खुशीमे मेनादे ने अनेक पक्वान्न बनाए. गौरादे ने इस दिन बाल धोए और हाथ पैर मे मेहंदी लगा ली.
दुसरे दिन सोलह श्रृंगार कर गौरादे सबेरे पुजा करने लगी. मेनादे ने बेटी की पूजा के लिये गेहुके आटे की गळवाणी, मेथीकी पिंडोळी, आटे के फल, डोरा, काच, कंघी, चोटी, कुकू की डिब्बीया इत्यादी चिजे बनाई.
इधर ईसरजी भोजन करने बैठे. उनके मन मे सासुजी की परीक्षा लेने का विचार आया और उन्होने बनाया हुआ सारा भोजन खा लिया. फिर जल्दी वापस लौटने की जीद करने लगे.
गौरादे की पुजा हो गई और उनको भुख लग गई. मेनादे ने कहा, "बेटी खाना खत्म हो गया."
गौरादे ने कहा जो है वो परोसदो. इस तरह गौरादे आठ फल, गळवाणी और मेथीकी पिंडोळी खाकर, एक लोटा भर पाणि पीकर कैलास के लिए रवाना हो गई.
दोपहर की कडी धुप की वजह से ईसरजी और गौरादे पिपल की घनी छाँव मे आराम के लिए रुक गये. बातो बातो मे ईसरजी ने पुछा, "गौरादे आपने क्या खाया?"
गौरादे ने जवाब दिया, "जो आपने खाया वही मैने खाया."
"झुठ मत बोलो." ईसरजी बोले.
गौरादे बोली, "महाराज बेटी जवाई मे कभी फर्क रहता है क्या! आपने जो खाया वही मैने खाया."
बाते करते करते गौरादे को निंद लग गई. मौका देख ईसरजी ने गौरादे के पेट की ढकणी खोल कर देखी तो उसमे आठ फल, गळवाणी, मेथीकी पिंडोळी और लोटा भर पाणि डळमळ कर रहे थे.
गौरादे जगजाने के बाद ईसरजी बोले, "आपके पेट मे तो आठ फल, गळवाणी, मेथीकी पिंडोळी और लोटा भर पाणि डळमळ कर रहे है. आपने झुठ बोला."
कैसे पता चला ऐसा गौरादे ने पुछा. तब ईसरजी बोले, "मैने आपके पेट की ढकणी खोल कर देखी."
तब गौरादे बोली, "महाराज ये आपने क्या किया. आज आपने देखा कल कोई और देखेगा. पेटमे क्या है यह जानने के बाद बेवजह कलह होंगे और इससे संसार मे अशांती बढेगी."
पहले पेटकी ढकणी खुला करती थी. पर गौरादे की चिंता जानने के बाद ईसरजी ने पेटकी ढकणी को उलटा रख कर हमेशा के लिए बंद कर दिया.
हे ईसरजी मेनादे और गौरादे की जैसी परीक्षा ली, वैसी किसीकी न लेना. घटती की बढती कर दो. अधुरी की पुरी कर दो. सबकी सुख समृद्धी कर दो. सुहाग अमर रख दो. भूल को माफ करदो.
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